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Sunday, November 19, 2017

अधुरे ख्वाबों का शहर....


अधुरे ख्वाबों का शहर,
कहता है मुझसे
जो वादा था तुम्हारा,
वो तो तुम बनी नही ....
अौर अाज जो तुम हो,
वो हो मुझ से अन्जान सी ...
वापस लौट भी अाअोगी,
तो, वो ना होगी, जो थी पुरानी दास्तान.
खोजना फिर तुम एक नया वजूद,
बनाना एक नयी पहचान.
जो भूले है तुम्हे
शायद ही अायेंगे लौटके,
राह ना तकना उनकी
नयी मंझीले, लायेंगे नये रिश्तों के हौसले.
नयी दुनिया मे अगर हो भी तुम अाबाद,
इस शहर मे बिखरे ख्वाबोंको समेटना जरुर ...
बिखरे, अधुरे, पुरे, कैसे भी हो
तुम नही अपनाओगी तो पडे रहेंगे
इस शहर हो ना है फिकर ... धुंअा बनके कभी उड जायेंगे ..
अधुरे ख्वाबों का शहर .....
-Amruta